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कब नहीं मिले हम? बस एक-दूसरे को पास होने का एहसास नहीं दिला पाए। जब-जब तुम अपने कामों को लेकर व्यस्त रहते थे,उलझे रहते थे सरकारी कागजातों के पन्नों के बीच में......मैं पास में रही वही तुम्हारे। कभी पानी का गिलास लिए,कभी चाय की कप थामे, कभी-कभी पंखा झर्राते हुए क्योकिं अक्सर तुम पसीने से तर-व-तर हो जाते थे। तो कभी तुम्हारा कन्धा दबाते हुए यह सोचकर की शायद इससे तुम्हारा बोझ थोड़ा हल्का कर सकूँ। तुमने ही तो कितनी बार मेरा हाथ खींच कर अपने पास बैठाया मुझे। जब-जब तुम लेटे रहते थे सिरहाने पर दोनों हाथ अपने सिर पर बांधे, कुछ सोचते थे।खोए रहते थे किसी ख्यालों मे...... मैं भी तो रहती थी पास में लेटी। मैं तुम्हारे सीने पर अपना सर रखकर धड़कनो की उन गूँजों को सुनती थी। क्या मैंने पूछा नहीं तुमसे तूम्हारे उन खयालों के बारे में? कई बार बातों को तुमने टाल दिया। कई बार तुमने बताना भी चाहा तो हो सकता है मैं समझ नहीं पायी। या तुमने बताया भी तो बातों की उन गहराइयों को आंकने में मुझसे चूक हो गयी। मगर मैने सुना कब नहीं? हमेशा। हर बार। हर कहीं। तुमने सुबह आंख खुलते ही अक्सर मुझे देखा होगा पर्दों